TUNGNATH MHADEV MANDIR

                           जय बाबा तुंगनाथ

उत्तराखंड की कई ख़ूबसूरत जगहों में से एक जगह है चोपटा,इसको मिनी स्विट्जरलैंड के नाम से भी जाना जाता है, ये जगह हरिद्वार से लगभग 230 किमी दूर है लेकिन पहाड़ी रास्ता होने के कारण समय थोड़ा ज्यादा लग सकता है, यहां सर्दियों मैं टूरिस्ट की भरमार होती है, इसलिए वहा जाने से पहले ही कैम्प या होटल बुक करवा लेना चाहिए, चोपटा में आप प्राकृतिक छटाओं ओर दुर्लभ दृश्यों ओर दुर्लभ प्रजातियों के पक्षियों का नजारा ले सकते है,

                  चौपटा से लिया गया एक चित्र

 चोपटा रुद्रप्रयाग जिले मैं समुद्रतल से 9500 फ़ीट ऊँचाई पर स्थित है, यहाँ पंचकेदार में से तृतीय केदार श्री तुंगनाथ महादेव का प्राचीन मंदिर स्थित है इस मन्दिर को दुनिया का सबसे ज्यादा ऊँचाई पर स्थित मंदिर माना जाता है, जिसकी दूरी चोपटा से लगभग 3,50 किमी दूर  है

                             तुंगनाथ महादेव

 ओर ये दूरी तय करके हम 1250 फ़ीट की ऊँचाई पर पहुच जाते है, इससे आप अंदाज़ लगा सकते है की चढाई कितनी खड़ी होगी!

                           तुंगनाथ मंदिर ट्रैक

 चोपटा की जितनी तारीफ की जाये उतनी कम है, इसको भारत के स्विट्जरलैंड की उपमा भी दी जाती है, यहा प्रकृति की सुंदरता अद्भुत है तथा यहा सब कुछ प्राकृतिक है इसकी सुंदरतम छटा ओर सादगी से लोग अनायास ही इस ओर खिंचे चले आते है,

                 चोपटा से लिया गया एक चित्र

कहते है स्वयं भोलेनाथ जी खुद को यहा बसने से नही रोक पाए ओर तुंगनाथ महादेव शिवलिंग के रूप मैं यही स्थापित हो गए, तो आम मनुष्य इस अद्धभुत जगह के मोह से कैसे दूर रह सकता है,

                               चंद्रशिला ट्रैक

 यहा आकर एक अलग ही दुनिया का अनुभव होता है चारो तरफ हरयाली ओर सामने खड़ा हिमालय पर्वत जिसके मनोरम दृश्य अनायास ही अपनी ओर खीचते है, ये एक खूबसूरत ट्रैकिंग स्थल है चारो ओर से पर्वतो ओर जंगलो से घिरा ये स्थान अपनी भव्यता का दर्शन करवाता है रास्ते मैं कई सारे बुग्याल भी देखने को मिलते है, पहाड़ पर स्थित खुले मैदानों को बुग्याल कहा जाता है,

             तुंगनाथ मार्ग से लिया एक मनोरम चित्र

 तुंगनाथ मंदिर सबसे उचाई पर स्थित शिवलिंग है ये 12000 फ़ीट की उचाई पर स्थित है यहा से हिमालय की पर्वत श्रृंखलाये साफ ओर स्पष्ट दिखाई देती है, जिसमे से प्रमुख है चौखम्बा, केदारशिखर, मेरु, सुमेरु, बन्दरपुच्छ ओर नंदादेवी आदि!


देवरिया ताल से केदारनाथ पर्वत के दर्शन

 इस मंदिर की स्थापना पांडवो ने की थी, पौराणिक कथाओ के अनुसार महाभारत में भाई बन्धुओ की हत्या ओर भयंकर रक्तपात के पाप से मुक्ति पाने ओर भगवान शिव से क्षमा ओर वरदान हेतु ओर भगवान शिव को प्रसन्न करने के लिए पांडवो ओर द्रोपदी ने हिमालय का रुख किया, महाभारत मैं हुए रक्तपात से भगवान शिव पांडवो से रुष्ट हो गए थे, बंधु बांधवो की हत्या से रुष्ट भगवान शिव पांडवो से मिलना नही चाहते थे, इसलिए वह एक गुफा मैं छिप गए जिसको आज गुप्त काशी के नाम से जाना जाता है, मगर पांडवो ने उन्हें देख लिया, शिव जी ने सोचा, कही पांडव मोक्ष ना मांग ले, इसलिये उन्होंने भैसे का रूप धारण कर लिया ओर भागने लगे, लेकिन भीम ने उन्हें पहचान लिया ओर उनके रास्ते में दो अलग अलग चट्टानों पर पैर रखकर खड़े हो गए, यह देखकर भैसे रूपी भगवान शिव धरती में समा गए ओर उनके शरीर के अंग हिमालय में पांच अलग अलग स्थानों पर प्रकट हो गए, जिन्हें आज पंचकेदारो के नाम से जाना जाता है, केदारनाथ में पृष्ठ भाग, तुंगनाथ में भुजा, मदमहेश्वर में नाभि, रुद्रनाथ में चेहरा ओर जटाये कल्पेश मैं प्रकट हुए, ये पांचो केदार उत्तराखंड में स्थित है, इसलिए पांडवो ने भगवान भोलेनाथ को प्रसन्न करने के लिए इस मंदिर की स्थापना की तथा यही उन्होंने शिव की तपस्या कर उनको प्रसन्न किया,

                                                                  h//youtu.be/VcIXbgG19SU

 इस मन्दिर में भगवान शिव के हाथ की पूजा की जाती है, यहा की वास्तुकला उत्तर भरतीय शैली का प्रतिनिधित्व करती है, मन्दिर के प्रवेश द्वार पर नन्दी बैल की पत्थर की मूर्ति है जो हिन्दू पौराणिक कथाओ के अनुसार भगवान शिव की सवारी है,



 कालभैरब ओर महर्षि व्यास ओर हिन्दू संतो के साथ पांडवो की मुर्तिया भी यहा स्थापित है, इसके अलावा विभिन्न देवी देवताओ के छोटे छोटे मन्दिरो को इस मंदिर के आसपास देखा जा सकता है, यह मन्दिर नवम्बर से मार्च तक बन्द रहता है, तुंगनाथ से डेढ़ किमी आगे चंद्रशिला स्थित है


                                  चंद्रशिला

 ये डेढ़ किमी की खड़ी ओर दुर्गम चढाई है यहा का नजारा अविश्वसनीय होता है, चारो तरफ बर्फ से ढकी खूबसूरत पहाड़िया रास्ते वादिया अनायास ही अपनी तरफ आकर्षित करती है, ये जगह धरती पर स्वर्ग है, यहा आकर आप क्या महसूस करते हो ये शब्दों मैं बयाँ करना भी मुश्किल है, इस जगह की सुंदरता की तारीफ करने में शब्द भी कम पड़ जाते है

चंद्रशिला

चौपटा में मेरे द्वारा खींचे गए कुछ चित्र इस प्रकार हैं मैं चौपटा नवंबर मंथ के मध्य में गया था। उस टाइम वहां का नजारा सचमुच देखने योग्य था मैं नीचे लिंक भी दूंगा जिसने आप देख सकते हैं वहां पर नजारा कैसा रहा होगा।













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